Eid Ki Namaz Ka Tariqa | ईद की नमाज़ का तरीक़ा
- नियत दिल के इरादे का नाम किसी भी नमाज़ की नियत दिल के इरादे से हो जाती है लेकिन जुबान से केह लेना मुस्तहब है
- Eid Ki Namaz Padhne Ki Niyat Is Tarah Karen : “मे निय्यत करता हूं दो रक्अत नमाज़ ईदुल फ़ित्र की,
- साथ छ ज़ाइद तकबीरों के,
- वास्ते अल्लाह तआला के,
- पीछे इस इमाम के”
- फिर कानों तक हाथ उठाईए और अल्लाहु अकबर कह कर नाफ़ के नीचे हाथ बांध लीजिए
- फिर कानों तक हाथ उठाइये और अल्लाहु अक्बर कहते हुए लटका दीजिये ।
- फिर हाथ कानों तक उठाइये और अल्लाहु अक्बर कह कर लटका दीजिये ।
- फिर कानों तक हाथ उठाइये और अल्लाहु अक्बर कह कर बांध लीजिये
- या’नी पहली तक्बीर के बा’द हाथ बांधिये इस के बा’द दूसरी और तीसरी तक्बीर में लटकाइये
- और चौथी में हाथ बांध लीजिये ।
- इस को यूं याद रखिये कि जहां क़ियाम में तक्बीर के बाद कुछ पढ़ना है
- वहां हाथ बांधने हैं और जहां नहीं पढ़ना वहां हाथ लटकाने हैं ।
- फिर इमाम तअव्वुज़ और तस्मिया आहिस्ता पढ़ कर
- अल हम्द शरीफ और सूरह बुलन्द आवाज़ के साथ पढ़े, फिर रुकूअ करे।
- दूसरी रक्अत में पहले अल हम्दु शरीफ़ और सूरह बुलंद अवाज़ के साथ पढ़े,
- फिर तीन बार कान तक हाथ उठा कर अल्लाहु अक्बर कहिये और हाथ न बांधिये
- और चौथी बार बिगैर हाथ उठाए अल्लाहु अक्बर कहते हुए रुकूअ में जाइये
- और काइदे के मुताबिक नमाज़ मुकम्मल कर लीजिये।
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Auraten Eid Ki Namaz Kaise Padhe ? | औरतें ईद की नमाज़ कैसे पढ़े ?
औरतों पर ईद की नमाज़ वाजिब नहीं है, और मर्दों के साथ जमात मे शामिल होना भी जायज़ नहीं, और औरत हो या मर्द ईद की नमाज़ घर मे ताने तन्हा भी नहीं पढ़ सकते क्यूंकी ईद के लिए जो शरायतें है उसमे एक जमात भी है
औरतों के लिए बेहतर है की ईद की जमात हो जाने के बाद घर मे चाशत के नमाज़ अदा करें इन्शाअल्लाह बहुत अज्र मिलेगा
रेफ्रन्स: अलमगीरी 1/74, बहारे शरीयत हिस्सा 4
ईद की नमाज़ पढ़ने जाने से पहले की सुन्नतें
हज़रते सय्यिदुना बुरैदा रदियल्लाहु तआला अनहू से मरवी है की हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इदुल फ़ित्र के दिन कुछ खा कर नमाज़ के लिए तशरीफ़ ले जाते थे, और ईदुल अज़हा के रोज़ नहीं खाते थे जब तक नमाज़ से फारिग न हो जाते |
नमाज़े ईद किस पर वाजिब है ?
ईदैन (या’नी ईदुल फ़ित्र और बकरा ईद) की नमाज़ वाजिब है मगर सब पर नहीं सिर्फ उन पर जिन पर जुमुआ वाजिब है। ईदैन में न अज़ान है न इकामत।(बहारे शरीअत, जि. 1, स. 779,)
ईद की अधूरी जमाअत मिली तो......?
ईद की अधूरी जमाअत मिली तो……?
पहली रक्अत में इमाम के तक्बीरें कहने के बा’द मुक्तदी शामिल हुवा तो उसी वक़्त (तक्बीरे तहरीमा के इलावा मज़ीद) तीन तक्बीरें कह ले अगर्चे इमाम ने किराअत शुरू कर दी हो और तीन ही कहे अगर्चे इमाम ने तीन से ज़ियादा कही हों और अगर इस ने तक्बीरें न कहीं कि इमाम रुकूअ में चला गया तो खड़े खड़े न कहे बल्कि इमाम के साथ रुकूअ में जाए,
और रुकूअ में तक्बीरें कह ले और अगर इमाम को रुकूअ में पाया और ग़ालिब गुमान है कि तक्बीरें कह कर इमाम को रुकूअ में पा लेगा तो खड़े खड़े तक्बीरें कहे फिर रुकूअ में जाए वरना अल्लाहु अक्बर कह कर रुकूअ में जाए और रुकूअ में तक्बीरें कहे फिर अगर इस ने रुकूअ में तक्बीरें पूरी न की थीं कि इमाम ने सर उठा लिया तो बाक़ी साक़ित हो गई (या’नी बक़िय्या तक्बीरें अब न कहे) और अगर इमाम के रुकूअ से उठने के बा’द शामिल हुवा
तो अब तक्बीरें न कहे बल्कि (इमाम के सलाम फैरने के बा’द) जब अपनी (बक़िय्या) पढ़े उस वक़्त कहे और रुकूअ में जहां तक्बीर कहना बताया गया उस में हाथ न उठाए और अगर दूसरी रक्अत में शामिल हुवा तो पहली रक्अत की तक्बीरें अब न कहे बल्कि जब अपनी फ़ौत शुदा पढ़ने खड़ा हो उस वक़्त कहे। दूसरी रक्अत की तक्बीरें अगर इमाम के साथ पा जाए फ़बिहा (या’नी तो बेहतर) । वरना इस में भी वोही तफ्सील है जो पहली रक्अत के बारे में मज़्कूर हुई । (बहारे शरीअत, जि. 1, स. 782
ईद की जमाअत न मिली तो क्या करे ?
इमाम ने नमाज़ पढ़ ली और कोई शख़्स बाकी रह गया ख़्वाह वोह शामिल ही न हुवा था या शामिल तो हुवा मगर उस की नमाज़ फ़ासिद हो गई तो अगर दूसरी जगह मिल जाए पढ़ ले वरना (बिगैर जमाअत के) नहीं पढ़ सकता। हां बेहतर येह है कि येह शख्स चार रक्अत चाश्त की नमाज़ पढ़े ।
ईद के दिन येह उमूर मुस्तहब हैं :
- बाल कटवाना
- नाखुन तराशना
- गुस्ल करना
- खुश्बू लगाना
- मिस्वाक करना
- अच्छे कपड़े पहनना
- नमाज़े फज्र मस्जिदे मेहल्ला में पढ़ना
- ईदुल फ़ित्र की नमाज़ को जाने से पहले चन्द खजूरें खा लेना
- तीन,पांच,सात याकमोबेश मगर ताक़ हों।
- खजूरें न हों तो कोई मीठी चीज़ खा लीजिये
- नमाज़े ईद, ईदगाह में अदा करना
- ईदगाह पैदल चलना
- सुवारी पर भी जाने
- में हरज नहीं
- मगर जिस को पैदल जाने पर कुदरत हो उस के लिये पैदल जाना अफ्ज़ल है
- और वापसी पर सुवारी पर आने में हरज नहीं नमाज़े
- ईद के लिये एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना ईद
- की नमाज़ से पहले स-द-कए फित्र अदा करना (अफ्ज़ल तो येही है मगर
- ईद की नमाज़ से कब्ल न दे सके तो बा’द में दे दीजिये)
- खुशी जाहिर करना कसरत से स-दका देना
- ईदगाह को इत्मीनान व वकार और नीची निगाह किये जाना
- आपस में मुबारक बाद देना
- बा’दे नमाज़े ईद मुसा-फ़हा (या’नी हाथ मिलाना) और गले मिलना
- जैसा कि उमूमन मुसल्मानों में राइज है बेहतर है।
ऐ हमारे प्यारे अल्लाह عَزَّ وجل हमें ईदे सईद की खुशियां सुन्नत के मुताबिक मनाने की तौफीक अता फरमा। और हमें हज शरीफ और दिदारे मदीना व ताजदारे मदीना صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم की दीद की की हक़ीक़ी ईद बार बार नसीब फरमा
امين بجاهِ النَّبِيِّ الأمين صلى الله تعالى عليه واله وسلم
तेरी जब कि दीद होगी जभी मेरी ईद होगी, मेरे ख़्वाब में तूम आना म-दनी मदीने वाले
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