Laylatul Qadr Ki Fazilat – लैलतुल क़द्र की फ़ज़ीलत

Laylatul Qadr Ki Fazilat -लैलतुल क़द्र की फ़ज़ीलत

इस उम्मत पर अल्लाह तआला का एक बहुत बड़ा अहसान है कि उसने हमे एक ऐसी रात से नवाजा जो साल भर की रातों में बेहतरीन और अज़ीम रात है, जिस रात के बारे में अल्लाह तआला ने कुन की एक सूरत उतारी है जिस की रहती दुनिया तक तिलावत होती रहेगी। इस रात का अल्लाह तआला के नजदीक इतना बड़ा मकाम व अहमियत है, कि इस रात की इबादत को अल्लाह तआला ने एक हज़ार महीने की इबादत से भी बेहतर करार दिया है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि ये रात बहुत ब बरकत रात है , जिस में अल्लाह के फरिश्ते खैर व भलाई के साथ उतरते हैं। इस रात का नाम Lailatul Qadr है’ यह रात रमज़ान के आखरी अशरों में से एक रात है, जिस का इल्म अल्लाह तआला ने पोशीदा रखा है  और इस में अल्लाह की कोई बड़ी हिकमत है और इसी में हमारी भलाई है |

Laylatul Qadr Ki Fazilat

इस रात का नाम लैलतुल-क़द्र क्यों है ?

अल्लाह तआला इस को साल भर में होने वाली चीजों का हुक्म देता है  चुनाँचे अल्लाह तआला इस रात में बन्दों की रोज़ियों, ज़िंदगी, मौत, दुनिया के वकियात, खुशनसीबी , बदबखती, को लिखता है और उसे फरिश्तों के हवाले कर देता है। इसे खुशुशी और सालाना तकदीर कहते है, जबकि आम तकदीर जमीनो आसमान की पैदाइश से पचास हजार साल पहले ही लिखी जा चुकी हैं, इस बारे में अल्लाह तआला का इर्शाद है | إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُبَارَكَةٍ إِنَّا كُنَّا مُنْذِرِينَ فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍحكيم ( الدخان: ٣-٤) “बेशक हम ने इस एक बाबरकत रात में नाज़िल किया है- यकीनन हम डराने वाले है | इस (रात) में हर हिकमत वाले काम का फ़ैसला किया जाता है  ।” (सूरतुद्दुखानः3)

हज़ार रातों से बेहतर रात

अल्लाह तआला के नज़दीक इस रात की बड़ी हैसियत है यानि बहुत बड़ा मकाम व मर्तबा और बड़ी शान है, इसी लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इस रात को हज़ार महीनों से अफ़जल करार दिया है इस रात में इबादत करना हज़ार महीनों (यानी 86 साल से ज्यादा) की इबादत से अफ़जल है, ये अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फरमान है
إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْر
तर्जुमा- बेशक हमने इस शबे क़द्र में उतारा और तुम ने क्या जाना क्या शबे क़द्र

को किस रात में तलाश किया जाए ?

बेशक लैलतुल क़द्र रमज़ान के आखरी अशरे में है, जैसा की बुखारी व मुस्लिम की हदीस में है  की आयशा रदियल्लाहु अन्हा से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया लैलतुल क़द्र को रमज़ान के आखरी अशरे में तलाश करो बल्कि लैलतुल क़द्र की तलाश में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सबसे पहले रमज़ान के पहले अशरे में ऐहतिकाफ किया, फिर दूसरे अशरे में ऐहतिकाफ किया, फिर आपको अल्लाह तआला की तरफ से इत्तिला मिली की Laylatul Qadr रमज़ान के आखरी अशरे में है,फिर आपने आखरी अशरे का ऐहतिकाफ किया और सहाबा इक़राम को भी इसकी इत्तिला दी और फरमाया जो शख्स ऐहतिकाफ चाहता है वो आखरी अशरे में करे (बुखारी-मुस्लिम) और बुखारी व मुस्लिम की एक और रिवायत में आयशा रदियल्लाहु अन्हा से मरवी है की रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: Laylatul Qadr को रमज़ान के आखरी अशरे के ताक (odd) रातों में तलाश करो, आयशा रदियल्लाहु अन्हा ने फरमाती हैं : अगर मुझे मालूम हो जाए की कौन सी रात Laylatul Qadr है तो उस रात मेरी सबसे ज्यादा ये दुआ होगी : ऐ अल्लाह में तुझसे बख्शिश और सलामती मांगती हूँ चुनांचे Laylatul Qadr में नमाज़ पढ़ना सहाबा इकराम रदियल्लाहु अन्हुम में मशहूर व मकबूल था

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