Surah Fatiha in Hindi
सूरह फातिहा के लफ़ज़ी माने आग़ाज़ के हैं और इस्तलहन हर उस चीज को फातिहा कहते है जिस से किसी मज़मून या किताब या शै का इफ्तिताह हो, क्यूंकी कुरान मजीद का आग़ाज़ इस सूरह से हुआ है और इस की तिलवात और हम नमाज़ की इब्तिदा भी इसी सूरह से होती है इस लिए इस फातिहा के नाम से मोसौम किया गया,
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Surah Fatiha Arbi Me
Surah Fatiha Hindi Me - सूरह फातिहा हिन्दी मे
Surah Fatiha Hindi Translation
तर्जुमा कन्जुल ईमान – Translation of Kanjul Imaan
- सब खूबियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का
- बहुत मेहरबान रहमत वाला
- रोज़े जज़ा (इंसाफ के दिन) का मालिक
- हम तुझी को पूजें और तुझी से मदद चाहें
- हम को सीधा रास्ता चला(5) रास्ता उनका जिन पर तूने अहसान किया
- न उनका जिन पर गज़ब हुआ और न बहके हुओं का
Surah Fatiha Ke Naam - सूरह फातिहा के नाम
इस सूरह के कई नाम हैं जैसे –
- फातिहा
- फातिहतुल किताब
- उम्मुल क़ुरआन
- सूरतुल कन्ज़
- काफ़िया
- वाफ़िया
- शाफ़िया
- शिफ़ा
- सबए मसानी
- नूर
- रुकैया
- सूरतुल हम्द
- तअलीमुल मसला
- सूरतुल मनोजात
- सूरतुल तफ़वीद
- सूरतुल सवाल
- उम्मुल किताब
- फातिहातुल कुरान
- सुरतुस सलात
इस सूरह मे 7 आयतें, 27 कालिमे, 140 अक्षर हैं, कोई आयत नासिख य मन्शूख नहीं
Surah Fatiha Kin Halaat Me Utri - सूरह फातिहा का शाने नुज़ूल
ये सूरत मक्कए मुकर्रमा या मदीनए मुनव्वरा या दोनों जगह उत्तरी अम्र बिन शर्जील का कहना है कि नबीये करीम (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनपर अल्लाह तआला के दुरूद और सलाम हों) ने हज़रत ख़दीजा ( रदियल्लाहो तआला अन्हा उनसे अल्लाहं राज़ी) से फ़रमाया- मैं एक पुकार सुना करता हूँ जिसमें इकरा यानी ‘पढ़ो’ कहा जाता है. वरक्ता बिन नोफ़िल को ख़बर दी गई, उन्होंने अर्ज किया- जब यह पुकार आए, आप इत्मीनान से सुनें. इसके बाद हज़रत जिब्रील ने ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज किया- फ़रमाईये : बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम अल्हम्दु लिल्लाहे रब्बिल आलमीन- यानी अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान, रहमत वाला, सब खूबियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का. इससे मालूम होता है कि उतरने के हिसाब से ये पहली सूरत है। मगर दूसरी रिवायत से मालूम होता है कि पहले सूरह इकरा उतरी. इस सूरत में सिखाने के तौर पर बन्दों की ज़बान में कलाम किया गया है.
Namaz Me Surah Fatiha Padhna -नमाज़ मे सूरह फातिहा पढ़ना
नमाज़ में इस सूरत का पढ़ना वाजिब यानी ज़रूरी है. इमाम और अकेले नमाज़ी के लिये तो हक़ीक़त में अपनी ज़बान से, और मुक्तदी के लिय इमाम की ज़बान से. सही हदीस में है कि इमाम का पढ़ना ही उसके पीछे नमाज़ पढ़ने वाले का पढ़ना है. कुरआन शरीफ़ में इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने वाले को ख़ामोश रहने और इमाम जो पढ़े उसे सुनने का हुक्म दिया गया है. अल्लाह तआला फ़रमाता है कि जब कुरआन पढ़ा जाए तो उसे सुनो और ख़ामोश रहो. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस है कि जब इमाम कुरआन पढ़े, तुम ख़ामोश रहो. और बहुत सी हदीसों में भी इसी तरह की बात कही गई है. जंनाज़े की नमाज़ में दुआ याद न हो तो दुआ की नियत से सूरए फ़ातिहा पढ़ने की इजाज़त है. कुरआन पढ़ने की नियत से यह सूरत नहीं पढ़ी जा सकती.
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