Islami Story in Hindi | हिन्दी इस्लामी स्टोरी
Islami Story | इस्लामी स्टोरी | माजूर, नाबीना, बूढ़ी औरत की मदद – हज़रते सय्यिदुना इमाम औज़ाई رَحْمَةُ اللَّهِ عَلَيْهِ से रिवायत है : एक बार रात के वक़्त हुज़रते उमर رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ अपने घर से निकले, तो हज़रते सय्यिदुना तल्हा बिन उबैदुल्लाह رَضِيَ اللهُ عَنْهُ ने उन्हें देख लिया और चुपके चुपके उन का पीछा करने लगे कि देखूं अमीरुल मोमिनीन इस वक्त कहां जा रहे हैं ? सय्यिदुना फारूके आज़म رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ एक घर में दाखिल हो गए, कुछ देर के बाद बाहर आए और फिर एक और घर में दाखिल हो गए । हज़रते सय्यिदुना तल्हा बिन उबैदुल्लाह رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ने उस घर को ज़ेहन में बिठा लिया और सुब्ह उस घर में गए, तो देखा कि उस में एक बूढ़ी, पाउं से माजूर, नाबीना खातून रेहती है। उस से पूछा: مَا بَالُ هُنَّ الرَّجُلِ يَأْتِيكَ؟ यह शख़्स तुम्हारे घर में क्यूं आता है? उस ने कहा: येह शख़्स मेरे पास काफ़ी अर्से से आ रहा है, (मैं चूंकि माजूर हूं लिहाज़ा) येह मेरे घरेलू काम काज कर देता है, मेरी तकालीफ़ दूर कर देता है ।
सुना आप ने ! हज़रते फारूके आज़म رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ में खैर ख़्वाही का कैसा
जज़्बा था कि मुसलमानों के अमीर और खलीफा होने के बा वजूद लोगों के काम कर दिया करते थे । अगर हम भी अपना येह जेह्न बना लें कि अपने घरवालों (मसलन वालिदैन, भाई, बहन) और महारिम रिश्तेदारों समेत अपनी किसी भी इस्लामी भाई बहन को ख़्वाह उसे जानते हों या न जानतें हों, किसी परेशानी में मुब्तला पाएंगें, तो रिज़ाए इलाही और खैर ख़्वाही की निय्यत करते हुवे उस की मदद ज़रूर करेगें। इस की बरकत से अज्रो सवाब के साथ साथ एक पुर अम्न मुआशरा बनाने में भरपूर मदद मिलेगी ।
शैखुल हदीस, हज़रते अल्लामा अब्दुल मुस्तफ़ा आज़मी رَحْمَةُ اللَّهِ
عَلَيْهِ है। इस हदीसे पाक : الدِّينُ نَصِيْحَةٌ यानी दीन मुसलमानों की खैर ख़्वाही करना है | के तहूत फ़रमाते हैं: दूसरों का भला चाहना और मुसलमान के साथ खैर ख़्वाही करना । इस के मफ्हूम में बड़ी वुस्अत (कुशादगी) है और हक़ीक़त तो येह है कि मुसलमान की खैर ख़्वाही येह एक ऐसा अमले खैर है कि अगर हर मुसलमान इस तालीमे नुबुव्वत को हिर्जे जान बना कर (यानी बहुत अज़ीज़ समझते हुवे)
इस पर अमल शुरू कर दे, तो एकदम मुसलमानों के बिगड़े हुवे मुआशरे की काया पलट जाए और मुस्लिम मुआशरा आराम व राहत और सुकून व इत्मीनान का एक ऐसा गेहवारा बन जाए कि दुन्या ही में जन्नत के सुकून व इत्मीनान का जल्वा नज़र आने लगे, न कोई मुसलमान किसी मुसलमान के साथ खियानत करेगा, न चुगली, गीबत और बोहतान तराशी का मुर्तकिब होगा, न जुल्म के किसी पहलू को अपने गोशए ख़याल में आने देगा, न
किसी के बनते हुवे काम में रोड़ा अटकाएगा बल्कि वोह सब का भलाचाहेगा और सब के साथ भलाई करेगा, जिस का कुदरती नतीजा येह होगा कि लोग भी उस की खैर ख़्वाही और भलाई करेंगे और वोह भी हर नुक्सान
से महफूज़ रहेगा और हमेशा उस का भला होता रहेगा।
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