Grahan Ki Namaz- ग्रहण की नमाज़
जब हुजूर नबिय्ये करीम, रऊफुर्रहीम صَلَّى اللهُ تَعَالَى عَلَيْهِ وَالِهِ وَسَلَّم के साहिबजादे हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम رَضِيَ اللَّهُ تَعَالَى عَنْهُ का विसाल हुवा तो सूरज को ग्रहन लग गया, लोग कहने लगे : “इब्ने रसूल के विसाल पर इसे ग्रहन लग गया।” तब हुजूर नबिय्ये अकरम صَلَّى اللَّهُ تَعَالَى عَلَيْهِ وَالِهِ وَسَلَّم इरशाद फ़रमाया : “सूरज और चांद अल्लाह عَزَّ وَجَلٌ की निशानियों में से दो निशानियां हैं, किसी की मौत या ज़िन्दगी पर इन्हें ग्रहन नहीं लगता । जब तुम (सूरज या चांद) ग्रहन देखो तो अल्लाह عَزَّوَجَلُ के ज़िक्र और नमाज़ की तरफ जल्दी करो।”
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Grahan Ki Namaz Ka Tariqa - नमाज़े ग्रहन का तरीका
इस का तरीका येह है कि मकरूह या गैरे मकरूह वक़्त में जब सूरज ग्रहन हो तो आवाज़ दी जाए कि नमाज़ खड़ी होने वाली है। इमाम मस्जिद में लोगों को दो रक्अत नमाज़ पढ़ाए, हर रक्अत में दो रुकू करे, दूसरी के मुकाबले में पहली रक्अत लम्बी पढ़े, किराअत बुलन्द आवाज़ से न करे, पहली रक्अत के पहले क़ियाम में सूरए फ़ातिहा और सूरए बक़रह जब कि दूसरे क़ियाम में सूरए फ़ातिहा और सूरए आले इमरान पढ़े, दूसरी रक्अत के पहले क़ियाम में सूरए फ़ातिहा और सूरए निसा जब कि दूसरे क़ियाम में सूरए फ़ातिहा और सूरए माइदह पढ़े,
या इन की मिक़दार में जहां से चाहे पढ़े। अगर हर क़ियाम में सूरए फ़ातिहा पर इक्तिफ़ा करे तो भी “काफी है और अगर छोटी सूरत पर इक्तिफ़ा करे तब भी कोई हरज नहीं। मक़्सूद येह है कि इसे सूरज रोशन होने तक तवील करे। पहले रुकूअ में सो आयात, दूसरे में दो सो आयात, तीसरे में तीन सो आयात और चौथे में चार सो आयात की मिक़दार तस्बीह पढ़े और हर रक्अत में सजदे भी रुकूअ के बराबर होने चाहियें । फिर नमाज़ के बा’द दो खुतबे पढ़े जिन के दरमियान एक जल्सा हो और लोगों को सदक़ा, गुलाम आज़ाद करने और तौबा का हुक्म दे। चांद ग्रहन में भी इसी तरह करे । अलबत्ता, इस में किराअत बुलन्द आवाज़ से करे क्यूंकि वोह रात की नमाज़ है।
Waqt-वक़्त
वक्त : सूरज ग्रहन की नमाज़ का वक़्त सूरज ग्रहन लगने से शुरू हो कर इस के रोशन होने तक है और सूरज गुरूब होने पर इस का वक़्त ख़त्म हो जाता है और सूरज की टिकया ज़ाहिर होने पर चांद ग्रहन की नमाज़ का वक़्त ख़त्म हो जाता है क्यूंकि इस वक़्त रात का गुलबा ख़त्म हो जाता है। अगर ग्रहन लगने से चांद छुप जाए तो भी इस का वक़्त ख़त्म नहीं होता क्यूंकि पूरी रात चांद का गुलबा होता है। अगर नमाज़ के दौरान ग्रहन ख़त्म हो जाए तो नमाज़ मुख़्तसर कर दे। जो इमाम के साथ दूसरा रुकूअ पाए उस की वोह रक्अत फ़ौत हो गई क्यूंकि अस्ल पहला रुकूअ है।
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